ये कहानी समर्पित है उन सभी लोगों को जो ईश्वर में आस्था रखते हैं, उन्हें पूजते हैं, लेकिन साथ साथ ही जाने अंजाने कुछ ऐसा भी करते हैं जिससे हमारे धर्म के साथ साथ कर्म की भी हानि होती है ।
ये कहानी सिर्फ एक कोशिश है ऐसे लोगों को जगाने की जो पुण्य समझकर दरसल पाप कर बैठते हैं ।
“ पागल... पागल... पागल...” यह कहते हुए क्लास के सभी बच्चे ताली बजाने लगे और भोले भाले टीटू को चिढाने लगे, टीटू उन सभी से परेशान होकर बोला “ मैं पागल नहीं हूं... मैं पागल नहीं हूं...” और कहते हुए क्लास से बाहर जाने लगा कि तभी छुट्टी होने की बेल बज गई और सारे बच्चे उसको धक्का देते हुए क्लास से बाहर चले गए ।
यह कोई नई बात नहीं थी बारह साल के टीटू के लिए जो मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर था, उसके साथ वाले बच्चे उससे एक या दो क्लास आगे पढ़ रहे थे लेकिन वह अपनी मानसिक कमजोरी के कारण हमेशा पीछे ही रहता जिसके कारण बच्चे उसका मजाक उड़ाया करते ।
उदास और परेशान टीटू जब अपने घर आया तो माँ रेनू ने उसका चेहरा देखकर समझ लिया कि जरूर आज भी बच्चों के साथ उसकी लड़ाई हुई है, वह भी रोज-रोज इन बातों से परेशान हो चुकी थी और सोचती कि काश टीटू ऐसा ना होता, हालाँकी टीटू इतना ज्यादा मानसिक कमजोर भी नहीं था कि उसे पागल कहा जाए, बस उसे चीज़ें जल्दी समझ में नहीं आती थी।
वह मां से बिना कुछ बोले ही अपने कमरे में जाकर लेट गया, माँ ने भी उससे नहीं पूछा कि आज क्या हुआ क्योंकि पूछने से टीटू का दर्द और उमड़ आता था और वह नहीं चाहती थी कि टीटू कमजोर बने ।
वो बस भगवान से यही प्रार्थना करती थी कि उसका बेटा ठीक हो जाए क्योंकि उसने टीटू के मानसिक इलाज में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी पर फिर भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी और वो ना ही टीटू को स्पेशल स्कूल में भेज कर मोटी फीस दे सकती थी ।
शाम को जब टीटू के पापा गौरव घर आये तो उन्होंने उसे बहुत समझाया, एक वही थे जिनके साथ टीटू को ऐसा लगता था जैसे वह दुनिया का सबसे होशियार बच्चा है ।
दिन धीरे धीरे ऐसे ही बीत रहे थे और फिर एक दिन सुबह सुबह रेनू ने कहा ......
“ अरे सुनो.....गणेश चतुर्थी के लिये एक अच्छी सी गणपति जी की मूर्ति ले आना और हां टीटू को भी साथ ले जाना घूम आएगा, इसी बहाने उसका मन थोडा बहल जायेगा |
टीटू पापा के साथ बाजार जाकर मूर्तियों की दुकान पर गणेश जी की मूर्ति देखने लगा, जहां ढेरों बड़ी छोटी और रंग बिरंगी मूर्तियां रखी थी । टीटू भगवान की मूर्ति देखकर अंदर ही अंदर बहुत खुश होने लगा तभी गौरव ने कहा “ अरे बेटा देखो... यह वाली मूर्ति कैसी लग रही है...? हम इन्ही गणपति को अपने घर ले चलते हैं” ।
टीटू ने देखा एक बड़ी सी मूर्ति जो काफी सुंदर लग रही थी लेकिन फिर भी उसने उस मूर्ति को खरीदने के लिए मना कर दिया और दूसरी ओर इशारा करते हुये बोला “ पापा मुझे वो नहीं वो वाली मूर्ति चाहिए, वह देखो छोटे से कितने प्यारे गणपति लग रहे हैं” ।